कविता / मात्र...
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
प्रेम की खाद
और
मीठे बोलों का जल
सिवा इनके
नहीं चाहिए
मन के पौधे को
और कुछ भी।
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कविता | मात्र | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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आदरणीया मैम, सादर नमन । अत्यंत सुंदर भावपूर्ण कविता, सदा की तरह ।आप जिस तरह गागर में सागर भर देतीं हैं , वास्तव में बहुत प्रेरक है । सत्य , यदि सब एक दूसरे को स्नेह बांटें और मीठा बोलें तो इस संसार में कोई भी दुखी या एकाकी न हो । सुंदर प्रेरक छंद के लिए हार्दिक आभार व आपको पुनः नमन।
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