Dr ( Miss) Sharad Singh |
नटनी की तरह
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
शून्य से शून्य तक के सफ़र में
उम्र के अंकों
और
आंकड़ों से खेलते
गुज़रते जाते हैं
दिन, सप्ताह, महीने, साल
इस दौरान साथ होती है
स्वप्नों की वह दुनिया
जिसमें होते हैं -
कुछ रात्रिस्वप्न
तो कुछ दिवास्वप्न।
अचानक
एक दिन रिक्त भगोने की तरह
अस्पताल के एक बिस्तर पर
शिथिल पड़ी देह
प्रज्जवलित करने लगती है
अटूट भावनाओं को
बिना किसी ईंधन के
और खदबदाने लगती हैं इच्छाएं
जीने की
रेशा-रेशा कटती रस्सी पर
अपना खेल पूरा करने को तत्पर
नटनी की तरह।
ठीक उन्हीं पलों में
महसूस होता है
भिंची मुट्ठी से फिसलती रेत जैसे
संबंध का महत्व
क़रीब आते शून्य को देखते हुए।
-----------–
(15.04.2021, 02:15 AM)
#शून्य #नटनी #रस्सी #रेत #मुट्ठी #स्वप्न #शून्य_से_शून्य_तक #शरदसिंह #डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह
#SharadSingh #Poetry #poetrylovers
#World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 16-04-2021) को
"वन में छटा बिखेरते, जैसे फूल शिरीष" (चर्चा अंक- 4038) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
मीना भारद्वाज जी,
Deleteमेरी कविता को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार 🌹🙏🌹
वाह!गहरे अर्थों को फिसलती रेत से छानती कविता।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद विश्वमोहन जी 🌹🙏🌹
Deleteबेहतरीन कविता
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार जयकृष्ण राय तुषार जी 🌹🙏🌹
Deleteओह ! जीवन का मर्मान्तक सत्य कितनी सरलता से उकेर दिया प्रिय शरद जी | सच में यही कडवा सच जीवन का | हार्दिक शुभकामनाएं|
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रेणु जी 🌹🙏🌹
Deleteमर्म को स्पर्श कर गए आपके ये उद्गार माननीया शरद जी।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जितेन्द्र माथुर जी 🌹🙏🌹
Deleteशून्य से आरंभ हुई यात्रा को शून्य पर ही तो समाप्त होना है, सुंदर सृजन !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनिता जी 🌹🙏🌹
Deleteदिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना,वर्षा दी।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति जी 🌹🙏🌹
Delete- शरद
ठीक उन्हीं पलों में
ReplyDeleteमहसूस होता है
भिंची मुट्ठी से फिसलती रेत जैसे
संबंध का महत्व
क़रीब आते शून्य को देखते हुए।
मर्मस्पर्शी .... माँ शीघ्र स्वस्थ हों कामना है .
हार्दिक आभार संगीता स्वरूप जी 🌹🙏🌹
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद ओंकार जी 🌹🙏🌹
ReplyDeleteरेशा-रेशा कटती रस्सी पर
ReplyDeleteअपना खेल पूरा करने को तत्पर
नटनी की तरह।
ठीक उन्हीं पलों में
महसूस होता है
भिंची मुट्ठी से फिसलती रेत जैसे
संबंध का महत्व
क़रीब आते शून्य को देखते हुए।.. जीवन की सच्चाई बयां करती अनुपम कृति,सुंदर जीवन दर्शन ।
हार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी 🌹🙏🌹
Deleteमर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति आदरणीय दी।
ReplyDeleteअचानक
एक दिन रिक्त भगोने की तरह
अस्पताल के एक बिस्तर पर
शिथिल पड़ी देह
प्रज्जवलित करने लगती है
अटूट भावनाओं को
बिना किसी ईंधन के
और खदबदाने लगती हैं इच्छाएं
जीने की
रेशा-रेशा कटती रस्सी पर
अपना खेल पूरा करने को तत्पर
नटनी की तरह।
ठीक उन्हीं पलों में
महसूस होता है
भिंची मुट्ठी से फिसलती रेत जैसे
संबंध का महत्व
क़रीब आते शून्य को देखते हुए।..ज़िंदगी का फ़लसफ़ा कहती सराहनीय रचना।
सादर
ReplyDeleteठीक उन्हीं पलों में
महसूस होता है
भिंची मुट्ठी से फिसलती रेत जैसे
संबंध का महत्व
क़रीब आते शून्य को देखते हुए।
पहली और आखिरी सत्य यही है,गहरे मर्म समेटे सुंदर सृजन शरद जी
शून्य से शून्य तक की यात्रा कितने जंजालों से घिरी होती है। एहसास के तीखे मीठे पड़ावों से गुजरते भावात्मक रिश्ते कभी बुनते कभी उधड़ते से पर एक सत्य पर से मिथ्या आवरण आखिर उठता ही है।
ReplyDeleteगहरी संवेदना समेटे सुंदर सृजन।