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15 April, 2021

नटनी की तरह | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | कविता

 

Dr ( Miss) Sharad Singh

नटनी की तरह

         - डॉ (सुश्री) शरद सिंह


शून्य से शून्य तक के सफ़र में

उम्र के अंकों 

और 

आंकड़ों से खेलते

गुज़रते जाते हैं

दिन, सप्ताह, महीने, साल

इस दौरान साथ होती है

स्वप्नों की वह दुनिया

जिसमें होते हैं -

कुछ रात्रिस्वप्न

तो कुछ दिवास्वप्न।


अचानक

एक दिन रिक्त भगोने की तरह

अस्पताल के एक बिस्तर  पर

शिथिल पड़ी देह

प्रज्जवलित करने लगती है

अटूट भावनाओं को

बिना किसी ईंधन के

और खदबदाने लगती हैं इच्छाएं

जीने की

रेशा-रेशा कटती रस्सी पर

अपना खेल पूरा करने को तत्पर

नटनी की तरह।


ठीक उन्हीं पलों में 

महसूस होता है

भिंची मुट्ठी से फिसलती रेत जैसे

संबंध का महत्व

क़रीब आते शून्य को देखते हुए।

   -----------–   


(15.04.2021, 02:15 AM)


#शून्य #नटनी #रस्सी #रेत #मुट्ठी #स्वप्न #शून्य_से_शून्य_तक #शरदसिंह #डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह

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22 comments:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 16-04-2021) को
    "वन में छटा बिखेरते, जैसे फूल शिरीष" (चर्चा अंक- 4038)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

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    1. मीना भारद्वाज जी,
      मेरी कविता को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार 🌹🙏🌹

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  2. वाह!गहरे अर्थों को फिसलती रेत से छानती कविता।

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    1. हार्दिक धन्यवाद विश्वमोहन जी 🌹🙏🌹

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  3. Replies
    1. बहुत बहुत आभार जयकृष्ण राय तुषार जी 🌹🙏🌹

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  4. ओह ! जीवन का मर्मान्तक सत्य कितनी सरलता से उकेर दिया प्रिय शरद जी | सच में यही कडवा सच जीवन का | हार्दिक शुभकामनाएं|

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    1. हार्दिक धन्यवाद रेणु जी 🌹🙏🌹

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  5. मर्म को स्पर्श कर गए आपके ये उद्गार माननीया शरद जी।

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    1. हार्दिक धन्यवाद जितेन्द्र माथुर जी 🌹🙏🌹

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  6. शून्य से आरंभ हुई यात्रा को शून्य पर ही तो समाप्त होना है, सुंदर सृजन !

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनिता जी 🌹🙏🌹

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  7. दिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना,वर्षा दी।

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    1. धन्यवाद ज्योति जी 🌹🙏🌹
      - शरद

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  8. ठीक उन्हीं पलों में

    महसूस होता है

    भिंची मुट्ठी से फिसलती रेत जैसे

    संबंध का महत्व

    क़रीब आते शून्य को देखते हुए।

    मर्मस्पर्शी .... माँ शीघ्र स्वस्थ हों कामना है .

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    1. हार्दिक आभार संगीता स्वरूप जी 🌹🙏🌹

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  9. बहुत बहुत धन्यवाद ओंकार जी 🌹🙏🌹

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  10. रेशा-रेशा कटती रस्सी पर

    अपना खेल पूरा करने को तत्पर

    नटनी की तरह।


    ठीक उन्हीं पलों में

    महसूस होता है

    भिंची मुट्ठी से फिसलती रेत जैसे

    संबंध का महत्व

    क़रीब आते शून्य को देखते हुए।.. जीवन की सच्चाई बयां करती अनुपम कृति,सुंदर जीवन दर्शन ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी 🌹🙏🌹

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  11. मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति आदरणीय दी।
    अचानक

    एक दिन रिक्त भगोने की तरह

    अस्पताल के एक बिस्तर पर

    शिथिल पड़ी देह

    प्रज्जवलित करने लगती है

    अटूट भावनाओं को

    बिना किसी ईंधन के

    और खदबदाने लगती हैं इच्छाएं

    जीने की

    रेशा-रेशा कटती रस्सी पर

    अपना खेल पूरा करने को तत्पर

    नटनी की तरह।


    ठीक उन्हीं पलों में

    महसूस होता है

    भिंची मुट्ठी से फिसलती रेत जैसे

    संबंध का महत्व

    क़रीब आते शून्य को देखते हुए।..ज़िंदगी का फ़लसफ़ा कहती सराहनीय रचना।
    सादर

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  12. ठीक उन्हीं पलों में

    महसूस होता है

    भिंची मुट्ठी से फिसलती रेत जैसे

    संबंध का महत्व

    क़रीब आते शून्य को देखते हुए।

    पहली और आखिरी सत्य यही है,गहरे मर्म समेटे सुंदर सृजन शरद जी

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  13. शून्य से शून्य तक की यात्रा कितने जंजालों से घिरी होती है। एहसास के तीखे मीठे पड़ावों से गुजरते भावात्मक रिश्ते कभी बुनते कभी उधड़ते से पर एक सत्य पर से मिथ्या आवरण आखिर उठता ही है।
    गहरी संवेदना समेटे सुंदर सृजन।

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