21 June, 2025

कविता | प्रेम ने उसे जिया है | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

प्रेम कविता
 
प्रेम ने उसे जिया है
        - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

जल की अपरिमित राशि
बनाती है नदी,
 नदी नहीं गढ़ती
जल की धाराएं

उत्तुंग शिखर पर्वत
नहीं चुनते
भूमि को,
भूमि करती है तय
पर्वत और
उसकी ऊंचाई

प्रत्येक प्राणी को
जीता है जीवन,
प्राणी जीवन को नहीं

भ्रमर नहीं चुनता
केशर
परागण के लिए,
केशर के
कण-कण चुनते हैं
भ्रमर को

इसी तरह
प्रेम चुनता है
अपने योग्य व्यक्ति
व्यक्ति नहीं चुनता
प्रेम को

जो सोचता है
उसने जी लिया प्रेम को
है वह भ्रम में
प्रेम ने उसे जिया है
उसने प्रेम को नहीं!          
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