प्रेम का धर्म
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
किसने कहा कि
प्रेम / नास्तिक है
निराकार और साकार
दोनों है प्रेम
लौकिक और अलौकिक
दोनों है प्रेम
प्रेम जीव है
और आत्मा भी
प्रेम जब गाढ़ा हो जाए
तो परमात्मा भी
प्रेम नैमिषारण्य का
चक्र कुंड है
महेश्वर का
दीपस्तम्भ भी
प्रेम कृष्ण की
बांसुरी है
तो राधा का
विश्वास भी
प्रेम अनिल है
अनल है, अनंत है
रीझी हुई पृथ्वी पर
स्वस्ति चिन्ह है
जो भी पवित्र है
वह आस्तिक है
और प्रेम से बढ़कर
पवित्र और ब्रह्म
कुछ भी नहीं
प्रेम सभी धर्मों में
समाकर भी धर्म से परे
है एक मौलिक धर्म
जो बना देता है
घोर आस्तिक
इसीलिए
प्रेम में डूबा व्यक्ति
निबाहता है
हर समय
प्रेम-धर्म
अविरल, अनवरत
अनंत की अभिलाषा में।
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