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27 June, 2023

शायरी | शहर की आग | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

अर्ज़ है -
जिस्म की आंच को,आंखों से हवा देते हैं। 
शहर की  आग  पे  आंखें  ही  मूंद लेते हैं।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
 
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