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29 June, 2023

कविता | किसी एक चेहरे के लिए | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता
किसी एक चेहरे के लिए
           - डॉ (सुश्री) शरद सिंह 

बहुत जीवंत होता है प्रेम
तभी तो
हंसते हैं, मुस्कुराते हैं 
गाते हैं, गुनगुनाते हैं
अपनी ही धुन में 
खो जाते हैं
प्रेम करने वाले 
कुछ अलग ही 
हो जाते हैं।
जैसे होती हैं-
उफनती नदी
पनिहारे बादल
बलखाती पगडंडी
सरसराती सरपत
और हथेली की मेहंदी में
बड़े जतन से
छुपाया गया नाम

मेहंदी
शादी की हो 
यह जरूरी नहीं
प्रेम की मेहंदी
रचती है और गहरी
और छुपा हुआ नाम
गुदगुदाता रहता है
हथेली की लकीरों को 
देर तक,
ख़्वाब बुनती हैं 
उंगलियां
रेशमी ख़यालों से
और धड़कता है मौसम 
दिल के क़रीब आकर

प्रेम जीवंत जो होता है
बिल्कुल 
उस एक 
मुस्कुराहट की तरह
जो खिलती है 
सबके नहीं,
किसी एक चेहरे पर
किसी एक चेहरे के लिए।
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