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24 June, 2023

शायरी | चलने देता | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

अर्ज़ है -
चंद   लम्हे   को   सम्हलने  देता।
दो क़दम  साथ  तो  चलने  देता।
स्याह मावस में चांद खिल उठता
ख़्वाब   से  ख़्वाब  बदलने देता।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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