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23 January, 2022

जाड़े वाली रात | ग़ज़ल | डॉ शरद सिंह | नवभारत

 "नवभारत" के रविवारीय परिशिष्ट में आज 23.01.2022 को  ग़ज़ल प्रकाशित हुई है "जाड़े वाली रात" । आप भी पढ़िए...
हार्दिक धन्यवाद #नवभारत 🙏
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ग़ज़ल
जाड़े वाली रात
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

सर्दी की है लहर हमेशा, जाड़े वाली रात
बरपाती है क़हर  हमेशा, जाड़े वाली रात

चंदा  ढूंढे  कंबल-पल्ली,  तारे  ढूंढें  शॉल
हीटर तापे शहर हमेशा,  जाड़े वाली रात

पन्नीवाली झुग्गी कांपे, कंपता है फुटपाथ
बर्फ़ सरीखी नहर हमेशा, जाड़े वाली रात

जिसके सिर पर छत न होवे और न कोई शेड
लगती उसको ज़हर हमेशा, जाड़े वाली रात

कर्फ्यू जैसी सूनी सड़कें, कहती हैं ये हरदम
एक ठिए पर  ठहर हमेशा,जाड़े वाली रात

धुंध, कुहासा, कोहरा ओढ़े सूरज सोया रहता
धीरे    लाती   सहर    हमेशा,जाड़े वाली रात

ढेरों करवट गिनते रहते नींद अगर जो टूटे 
होते  लम्बे  पहर  हमेशा,  जाड़े वाली रात

छोटी बहरों वाली ग़ज़लों जैसे छोटे दिन
लगती लम्बी बहर हमेशा,जाड़े वाली रात
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1 comment:

  1. सुन्दर रचना !
    " ढेरों करवट गिनते रहते........"

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