शरद का चांद
- डॉ शरद सिंह
शरद पूनम का चांद
पूरा है
पर
भीतर से
अधूरा है
या फिर
मेरी उदास आंखें
छलछला उठी
उसे देखते ही
और
दिखने लगा
चांद भी उदास
यादों के धब्बे
कैसे धोएगा चांद
मुझे पता नहीं
और कब तक
रोएगा चांद
मुझे पता नहीं
पता है तो
सिर्फ़ इतना कि
उदासी शीत
उतरा करेगी आंगन में
और
दूब की नोंक पर
दिखेंगे रात के आंसू
बड़े भोर से
शुक्लपक्षी बन कर
उड़े आकाश में
या छिप जाए
कृष्णपक्षी बन कर
चांद उदास रहेगा
ऋतु शरद उदास रहेगी
उदास रहेगी रात
व्यस्तता भरा दिन लिए
सूर्य के आने तक
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बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(२१-१०-२०२१) को
'गिलहरी का पुल'(चर्चा अंक-४२२४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
संस्पर्शी कथनानुभाव !
ReplyDelete-सांसों के चलने तक उदास ये चांद रहेगा ; ऋतुश्री भी !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 21 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत ही भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना
ReplyDeleteभीतर से अधूरा है
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteसमय ही यादों के बड़े से बड़े घाव को भर सकता है
ReplyDeleteशरद का चाँद अपने सुधारस से शायद भर भी दे घाव ...ऊपर से ही सही..
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण हृदयस्पर्शी सृजन।