Dr (Miss) Sharad Singh |
ग़ज़ल
चार क़िताबें पढ़ कर
- डाॅ सुश्री शरद सिंह
चार क़िताबें पढ़ कर, दुनिया को पढ़ पाना मुश्क़िल है।
हर अनजाने को आगे बढ़, गले लगाना मुश्क़िल है।
जब से उसने मुंह फेरा है और हुआ बेगाना-सा
तब से उसके दर से हो कर आना-जाना मुश्क़िल है।
सबको रुतबे से मतलब है, मतलब है ‘पोजीशन’ से
ऐसे लोगों से, या रब्बा! साथ निभाना मुश्क़िल है।
शाम ढली तो मेरी आंखों से आंसू की धार बही
अच्छा है, कोई न पूछे, वज़ह बताना मुश्क़िल है।
रात-रात भर तारे गिनना, बीते दिन की बात हुई
अब तो सीलिंग के पंखे से आगे जाना मुश्क़िल है।
मन की चिड़िया पंख सिकोड़े बैठी है जिस कोटर में
‘शरद’ उसे अब तिनका-तिनका और सजाना मुश्क़िल है।
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह ‘पतझड़ में भीग रही लड़की’ से)
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