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22 January, 2021

मन में घाव उकेरे | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह | आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

नवगीत

मन में घाव उकेरे
       - डाॅ सुश्री शरद सिंह

जब से 
दुख ने नाता जोड़ा
सपने चूर हुए
अपनों से
लगने वालों के
मुखड़े दूर हुए।

नागफनी-सा
दर्द उभर कर
मन में घाव उकेरे
भरी दुपहरी
घिर-घिर आए
पलकों तले अंधेरे

जब से
सबने रस्ता छोड़ा
घर नासूर हुए
सूने से 
आंगन में ठंडे
दिन तंदूर हुए।

टुकड़ा-टुकड़ा 
होता जीवन
हाथों फिसला जाए
पोर-पोर पर
दुखती चाहत
गुमसुम गीत सुनाए

जब से 
सूरज हुआ निगोड़ा
रंग बेनूर हुए
छाया से
लगते ये रिश्ते
नामंज़ूर हुए।
-----------
(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)
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15 comments:

  1. छाया से लगते ये रिश्ते नामंज़ूर हुए । बहुत ख़ूब शरद जी !

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    1. दिली शुक्रिया जितेन्द्र माथुर जी 🌹🙏🌹

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२३-०१-२०२१) को 'टीस'(चर्चा अंक-३९५५ ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    1. अनीता सैनी जी,
      मेरे नवगीत को आपने चर्चा मंच में स्थान दिया है, यह मेरे लिए अत्यंत सुखद है।
      आपका हार्दिक आभार एवं हार्दिक धन्यवाद 🌹🙏🌹
      - डॉ शरद सिंह

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  3. Replies
    1. शकुंतला जी हार्दिक धन्यवाद 🌹🙏🌹

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  4. जब से
    सूरज हुआ निगोड़ा
    रंग बेनूर हुए
    छाया से
    लगते ये रिश्ते
    नामंज़ूर हुए।

    –बहुत खूब
    उम्दा भावाभिव्यक्ति

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    1. हार्दिक धन्यवाद विभा रानी श्रीवास्तव जी 🌹🙏🌹

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  5. बहुत खूबसूरत सृजन ।
    मन स्पर्शी अभिव्यक्ति।
    सरस गेयता ।

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    1. कुसुम कोठारी जी हार्दिक धन्यवाद 🌹🙏🌹

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  6. बहुत ही सुन्दर रचना

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद अभिलाषा जी 🌹🙏🌹

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  7. हृदयस्पर्शी भावों से सजा सरस नवगीत । बहुत सुन्दर शरद जी!

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    1. हार्दिक धन्यवाद मीना भारद्वाज जी 🌹🙏🌹

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  8. नागफनी-सा
    दर्द उभर कर
    मन में घाव उकेरे
    भरी दुपहरी
    घिर-घिर आए
    पलकों तले अंधेरे
    बहुत बहुर सुन्दर

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