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07 June, 2025

कविता | प्रेम का पुष्प | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

प्रेम का पुष्प
     - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कभी देखा है
हथेली पर खिला हुआ 
ताज़ा, सुगंधित पुष्प?
नहीं न!
सदा नहीं भीगती 
हथेली
सदा नहीं खिलता 
पुष्प
किसी-किसी की 
हथेली
रह जाती है 
पुष्प बिना
जिसमें होती ही नहीं
प्रेम की लकीर
यद्यपि
प्रेम को लकीर नहीं
भावना चाहिए
हथेली पर पुष्प 
खिलाने के लिए।        
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