प्रेमकविता :
प्रेम होने दो अभिव्यक्त
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
उसने कहा
उससे -
मुझे मत बताओ
कि
तुम्हें प्रेम है मुझसे
क्योंकि प्रेम
सदियों से
दुहराए जाते
शब्दों से नहीं,
वह तो
व्यक्त होता है
अनुभूति की
राग-रागिनियों से
लय, माधुर्य
आरोह-अवरोह से,
प्रेम होने दो अभिव्यक्त
भंगिमाओं के
अलौकिक
पवित्र
संगीत से
होने दो ध्वनित
सांसों के तार-वाद्यों को
किसी कंदरा से लौटते
स्वर समूह की तरह
शब्दों के बिना
शब्दशः।
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