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08 June, 2024

शायरी | ख़्वाब | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ख़्वाब  तारों  से   टिमटिमाते हैं
सुबह    होते   ही   टूट  जाते हैं
ज़िंदगी  दुश्मनों - सी  लगती है
क्या कहें, किस तरह निभाते हैं
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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