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02 June, 2024

अब तो | कविता | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

अब तो
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

दिल के बादल भी
सूख चले
हो गए  
पानी से रहित, 
अब तो 
आंखों में भी 
इतने आंसू नहीं 
कि बरस कर 
बुझा सकें 
इस धरती की तपन।
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