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13 April, 2024

कविता | पुराने कलेण्डर के पन्ने | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता
पुराने कलेण्डर के पन्ने
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

अलमारी के खानों में 
बिछाकर रखे थे 
पुराने कैलेंडर के पन्ने
आज खोला जो 
अलमारी 
तो सोच बदल दूं ,
बिछा दूं नए काग़ज़।
कलेण्डर के पन्नो़ं के 
सफ़ेद पृष्ठ भाग 
यूं भी
हो चले हैं पीले 
टूटने लगेगा काग़ज़,
नया काग़ज़ 
लाएगा 
नया ताज़ापन,
यह सोचकर निकाले 
अलमारी से वे पन्ने
हर पन्ने को पलटते ही 
मिलीं कुछ पुरानी तारीख़ें
और उन तारीख़ों में
ढेर सारी यादें

कांपते हाथों से 
वापस जमा दिए  
पुराने पन्ने 
जहां बिछे थे वे पहले,
उन्हीं पर बिछा दीं 
नए काग़ज़ की पर्तें 
आख़िर
कुछ यादों का 
दबे रहना 
ज़रूरी है,
समय-समय पर 
पलट कर 
देखने के लिए।
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