ग़ज़ल
लिख देना
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
हमने अपना आज लिखा है, तुम अपना कल लिख देना।
इक बंजर के नाम, ओ साथी! हरियल जंगल लिख देना।
हमने तो न्यायालय में भी, पक्षपात ही झेला है
तुम सच्चाई की सलेट पर, निर्णय उज्ज्वल लिख देना।
तथाकथित अपनों के हाथों, अपना सब कुछ लुटा चुकी
उस लड़की के नाम शगुन से भीगा आंचल लिख देना।
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