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20 February, 2023

ग़ज़ल | कट रहे हैं दिन | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ग़ज़ल 
कट रहे हैं दिन 
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कट रहे हैं दिन सुपारी की तरह।
ज़िन्दगी  भारी,  उधारी की तरह।

चैन के पल  हो गए हैं  भूमिगत
एक मुजरिम इश्तिहारी की तरह।

बामशक्क़त हर दिवस-अवसान पर
वक़्त मिलता है दिहारी की तरह।
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*दिवस-अवसान = दिन डूबना
*दिहारी = दिहाड़ी, दैनिक मज़दूरी
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