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30 September, 2022

कविता | धूप बारिश के बाद की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह


धूप बारिश के बाद की
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कुछ अधिक
गरमाने लगी है
धूप
बारिश के बाद की
नमी, उमस
और उष्णता से भरी धूप
कर देती है व्याकुल
देहरी लांघते ही

धूप का काम है
तपना
वह तप रही है,
झुलसा रही है
अनावृत चेहरों को

चेहरे,
अपरिचित चेहरे
धूप के लिए भी
और
मेरे लिए भी,
भीड़ से गुज़रते हुए
हम नहीं देख पाते
चेहरों को
ठीक से
और देख भी लें
तो नहीं पढ़ पाते
उनकी अहमियत को
धूप भी नहीं पढ़ पाती
दिलों को
वरना
कर के महसूस
मेरे भीतर के
विसूवियस
मुझे
और न तपाती।
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2 comments:

  1. आदरणीया मैम , बहुत भावपूर्ण रचना पुनः । आपकी हर एक रचना, एक से बढ़ कर एक है , वैसे तो आपकी सभी रचनायें अनेकों बार पढ़ चुकी हूँ , बस आज प्रतिक्रिया पहली बार दे रही हूँ । धूप और संघर्ष एक से होते हैं , दोनों ही तपाते हैं । संघर्ष रूपी धूप हमें सतत तपाने की कोशिश करती है , कभी-कभी जब एक संघर्ष के बाद दूसरा संघर्ष आता है तो हमें समय निर्दयी लगने लगता है । बहुत ही सुंदर व भावपूर्ण रचना के लिए हृदय से आभार ।

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