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03 October, 2021

सपन कपासी | नवगीत | डॉ शरद सिंह


नेह पियासी

   - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह


मीलों लम्बी

घिरी उदासी

        देह ज़रा-सी।


कुर्सी, मेजें,

घर, दीवारें

सब कुछ तो मृतप्राय लगें


बोझ उठाते

अपनेपन का

पोर-पोर की तनी रगें


बंज़र धरती

नेह पियासी

       धार ज़रा-सी।


गलियां देखें

सड़के घूमें

फिर भी चैन न मिल पाए


राह उगा कर 

झूठे   सपने

नई यात्रा करवाए


रोती आंखें

सपन कपासी

     रात ज़रा-सी।

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5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज रविवार 03 अक्टूबर  2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है....  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04-10-2021 ) को 'जहाँ एक पथ बन्द हो, मिले दूसरी राह' (चर्चा अंक-4207) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  3. बहुत ही सुंदर सृजन।
    सादर

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  4. श्लाघ्य मनोव्यथाभिव्यक्ति !

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