वह एक स्त्री
- डॉ शरद सिंह
रजोनिवृत्ति पर
लिखी गई कविता
एक कवि के लिए
हो सकती है
क्रांतिकारी कविता,
स्त्रियों के प्रति
उदारता की कविता,
समस्त स्त्रियों के लिए
स्वातंत्र्य-उद् घोष की कविता
किन्तु उसकी
अपनी पत्नी के लिए नहीं
क्या याद है उस कवि को
कि उसने
कितनी बार खरीदा था
सेनेटरी नैपकिन
अपनी रजस्वला पत्नी के लिए
कि उसने कितनी बार
डिस्पोज़ किया था
पत्नी का इस्तेमालशुदा
सेनेटरी नैपकिन
कि उसने कितनी बार
सेंका था पत्नी की नाभि से
निचले हिस्से को
कि उसने
कितनी बार पिलाया था
दूध-हल्दी
उन पांच दिनों में
निःसंदेह,
कुछ कवियों की
कविताओं में
होती हैं दुनियाभर की स्त्रियां
और उन स्त्रियों की पीड़ा
किन्तु
उनमें नहीं होती
वह एक स्त्री
जो है उसकी पत्नी
वही पत्नी
सम्हालती है, रिश्ते और बच्चे
वह जाता है जब
वाहवाही लूटने
सम्मान पाने
रजोनिवृत्ति पर लिखी
अपनी कविता के लिए
कवि की कविता में मौज़ूद
स्त्रियों-सी
क्या पत्नी भी एक स्त्री नहीं होती?
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घर की मुर्गी दाल बराबर यूँ ही तो नहीं मुहावरा बना ।
ReplyDeleteगहन भाव लिए विचारणीय रचना ।
हार्दिक धन्यवाद संगीता स्वरूप जी 🌹🙏🌹
Deleteएक बेहतरीन अभिव्यक्ति सवाल खड़े करती हुई
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद वंदना गुप्ता जी 🌹🙏🌹
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