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14 August, 2021

चलो खेलें | कविता | डॉ शरद सिंह

चलो, खेलें !
        - डॉ शरद सिंह

चलो, 
जाति-जाति खेलें
चलो,
धर्म-धर्म खेलें
राजनीतिक गलियारों से
निकल कर
ये खेल
बनते जा रहे हैं 
बुनियादी खेल
सो,
अपडेट तो रहना होगा
खेल भी खेलना होगा
आख़िरकार,
ओलंपिक में भी
शामिल कर दिया 
हमने यह खेल
फिर चलो, खेलें

इससे भी न भरे जी
तो खेल सकते हैं
खेल ऑनर किलिंग का

हर उन्मादी खेल 
बढ़ा सकता है
टीआरपी सुर्खियों का
और गिरा सकता है
जीवनमूल्य
चुटकियों में।
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1 comment:

  1. वाह ! बहुत बहुत सुन्दर व्यंग्य |

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