छूट गए पीछे
- डॉ शरद सिंह
दिन जब चवन्नी थे
मीठे थे
दिन जब अठन्नी थे
नमकीन थे
दिन जब रुपैया हुए
खटमिट्ठे हुए
दिन अब रुपये को
कुचलते हुए
हो चले हैं कड़वे
धन्नू का टपरा
चाय मीठी थी
कैंटीन की चाय
चाय फ़ीकी थी
कैफे कॉर्नर
चाय थी ही नहीं
होम डिलेवरी में
नहीं है-
चाय, न कॉफ़ी
सिर्फ़ कोल्डड्रिंक
प्रेमपत्र में दर्ज़ प्रेम
भावुक था
किताबों में दबा प्रेमपत्र
संवेदना से तर था
मोबाईल टेक्स्ट पर चला प्रेम
उतावला रहा
अब
मैसेंजर पर चला प्रेम
हो चला है आभासीय
पैंचअप और ब्रेकअप के बीच।
सच,
हम आगे बढ़ गए
पर
छूट गए पीछे
मिठास, उष्मा और प्रेम।
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चर्चा मंच में मेरी कविता को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार मीना भारद्वाज जी 🌹🙏🌹
ReplyDeleteदिन जब चवन्नी थे
ReplyDeleteमीठे थे
दिन जब अठन्नी थे
नमकीन थे
दिन जब रुपैया हुए
खटमिट्ठे हुए
दिन अब रुपये को
कुचलते हुए
हो चले हैं कड़वे
सत प्रतिशत सत्य!
सुंदर सृजन
जी सुंदर सृजन । बहुत बधाई ।
ReplyDeleteसमय की नब्ज टटोलती सुंदर रचना
ReplyDeleteसच,
ReplyDeleteहम आगे बढ़ गए
पर
छूट गए पीछे
मिठास, उष्मा और प्रेम। बहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसच,
हम आगे बढ़ गए
पर
छूट गए पीछे
मिठास, उष्मा और प्रेम।
जीवन और रिश्तों का एकदम सटीक चित्रण करती रचना।