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14 July, 2021

ग़ज़ल | रूह तन्हा है | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ग़ज़ल
रूह तन्हा है ...
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

रूह तन्हा है, ज़ख़्म गहरा है
ग़म सरे-शाम आ के ठहरा है

याद आती हैं उड़ाने लेकिन
आसमानों पे आज पहरा है

खो गया चैन, सुकूं भी ग़ायब
कल समंदर था, आज सहरा है

और सुनवाई अब नहीं होगी
टूटे दिल का निज़ाम बहरा है

अब दिखेगा न मेरी आंखों को
फिर भी आंखों में एक चहरा है
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21 comments:

  1. रूह तन्हा है, ज़ख़्म गहरा है
    ग़म सरे-शाम आ के ठहरा है .

    मर्मस्पर्शी ग़ज़ल

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    1. हार्दिक धन्यवाद संगीता स्वरूप जी 🌹🙏🌹

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  2. सही कहा आपने,मार्मिक ग़ज़ल।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी 🌹🙏🌹

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  3. वाह
    अलग मिज़ाज
    "...फिर भी आंखों में एक चहरा है"
    उम्दा।
    नई रचना पौधे लगायें धरा बचाएं

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    1. बहुत शुक्रिया रोहितास जी 🌹🙏🌹

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  4. आपकी लिखी रचना गुरुवार 15 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    1. आदरणीय दीदी..
      लगता है भाई रवीन्द्र जी से सांठ-गाँठ हुई है
      आभार..
      सादर नमन

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    2. "पांच लिंकों का आनंद" मेरी कविता को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं हार्दिक आभार संगीता स्वरूप जी 🌹🙏🌹

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  5. बेहतरीन ग़ज़ल..
    अब दिखेगा न मेरी आंखों को
    फिर भी आंखों में एक चहरा है
    सादर..

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    1. हार्दिक धन्यवाद यशोदा अग्रवाल जी 🌹🙏🌹

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  6. "और सुनवाई अब नहीं होगी
    टूटे दिल का निज़ाम बहरा है" ..
    यूँ तो हर पंक्तियाँ ही गहरे ज़ख़्म की पीड़ा से गुहार करती प्रतीत हो रही हैं .. शायद ...

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    1. बहुत शुक्रिया सुबोध सिन्हा जी 🌹🙏🌹

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  7. व्वाहहहह.
    बेहतरीन..
    सादर..

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    1. हार्दिक धन्यवाद दिग्विजय अग्रवाल जी 🌹🙏🌹

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  8. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(18-7-21) को "प्रीत की होती सजा कुछ और है" (चर्चा अंक- 4129) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  9. बेहद हृदयस्पर्शी

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  10. बेहद खूबसूरत आदरणीय

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  11. बहुत ही हृदयस्पर्शी गजल
    लाजवाब।

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