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07 June, 2021

गुनाह | कविता | डॉ शरद सिंह

गुनाह
      - डॉ शरद सिंह

खुद को स्थगित रखने से बड़ा
कोई गुनाह नहीं

स्थगित, थमा हुआ पानी
मारने लगता है सड़ांध

स्थगित, थमा हुआ दिन
भर देता है उकताहट से

स्थगित, पड़ी हुई रातें
तरसती हैं सपनों के लिए

स्थगित व्यवहार 
बढ़ा देता है दूरियां

स्थगित संवाद 
घोंट देता है गला ध्वनियों का

स्थगित लेखन
मिटा देता है शब्दों को

स्थगित होना 
यानी
जीते जी मार देना खुद को

जबकि नहीं है यह समय
स्थगित रहने का
क्योंकि 
विश्वास, प्रेम, सुकून
सब कुछ तो है स्थगित।
    ------------

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14 comments:

  1. गति ही जीवन है। चरैवेती चरैवेती।

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    1. निःसंदेह विश्वमोहन जी !
      हार्दिक धन्यवाद आपको 🙏

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  2. स्थगन समाधान नहीं है...खूबसूरत रचना...👍👍👍

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    1. हार्दिक धन्यवाद वानभट्ट जी 🙏

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  3. सब सहें, पर बहें।
    प्रभावी पंक्तियाँ..

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद प्रवीण पांडे जी 🙏

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  4. वाह!सुंदर संदेश।

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    1. हार्दिक धन्यवाद अंचल पांडे जी 🙏

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  5. गतिशील होना ज़रूरी है । खुद को खारिज़ कर कुछ हासिल नहीं होता ।

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    1. संगीता स्वरूप जी, इन दिनों यही अनुभव कर रही हूं। ...हार्दिक धन्यवाद आपको 🙏

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  6. "स्थगित, थमा हुआ पानी
    मारने लगता है सड़ांध" - "स्थगित", स्थगन, के विरोध में और इन के बुरे पक्ष में सशक्त रचना/विचारधारा ...
    पर इस के कुछ अपवाद या इसके पक्ष में अभी ज़ेहन में आयी हुई दो बातें क्षमा सहित साझा कर रहा हूँ -
    १) झील का पानी अक़्सर मीठा होता है, जब कि झील की विशेषता ही है उसका स्थायित्व।
    २) बुद्ध या महावीर या फिर तथाकथित पौराणिक कथाओं के ऋषि-मुनियों को स्थिर एक स्थान पर ध्यान में बैठ कर ही दिव्य शक्ति मिली थी। जैसे- बुद्ध का बोधित्व वाला ज्ञान पीपल के नीचे वर्षों ध्यानमग्न बैठ कर ही मिला था .. शायद ...


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    1. सुबोध सिन्हा जी, अपने विचार साझा करने के लिए हार्दिक धन्यवाद आपको🙏
      सिर्फ इतना ही निवेदन है कि 'स्थगित' और 'स्थिर' में बहुत अंतर होता है। आपने जो दो उदाहरण दिए वह 'स्थिर' होने के हैं न कि 'स्थगित' होने के।

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  7. दिग्विजय अग्रवाल जी, आभारी हूं कि आपने मेरी कविता को "पांच लिंकों का आनन्द" में स्थान दिया। हार्दिक धन्यवाद 🙏

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  8. <a href ="https://jobsdhost.com/" rel="dofollow>Jobsdhost जी शुक्रिया</a>

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