- डॉ शरद सिंह
कभी सुबह ऐसी भी होगी
सोचा न था
तुम बिन सांसें लेनी होंगी
सोचा न था
आज भी छत पर फूल खिला है
गेंदे का
आज भी छत पर फूल खिला है
गुड़हल का
आज भी श्यामा-तुलसी
भीनी महक रही
आज भी छत पर गौरैया हैं
चहक रहीं
सिर्फ़ नहीं हो तुम
तो है सूनी पूरी छत
"बेटू", "बहना" सुनने को हैं
कान तरसते
वो धड़कन हैं कहां ? कि जिनमें
मेरे प्राण थे बसते
दुनिया भी मिल जाए
पर जो नहीं हो तुम तो
नहीं शेष है मेरे हाथों में
अब कुछ भी
कोरोना बन सांप
तुम्हें डंस लेगा, दीदी
और बिछुड़ना होगा हमको
इतना ज़ल्दी
कभी अकेले जीना होगा
सोचा न था
कभी अकेले रहना होगा
सोचा न था।
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कभी हरिवंशराय बच्चन जी ने अपनी जीवन-संगिनी श्यामा जी के विछोह के उपरांत अनेक अवसाद से ओतप्रोत कविताएं रची थीं जो अन्य कुछ नहीं, उनके संतप्त हृदय का क्रंदन ही थीं (निशा निमंत्रण, एकांत संगीत एवं आकुल अंतर में संकलित हैं वे कविताएं)। आपकी मनःस्थिति भी ऐसी ही है शरद जी जो आपकी काव्याभिव्यक्तियों में स्पंदित हो रही है। मेरी यही प्रार्थना है कि आपके शोकाकुल मन को कुछ शांति मिले। इतना और कहना है कि जैसे बिछुड़ने वालों की ज़िन्दगी क़ीमती थी, वैसे ही आपकी ज़िन्दगी भी क़ीमती है। अपना हर तरह से ख़याल रखिए।
ReplyDeleteधैर्य बंधाने के लिए हार्दिक धन्यवाद जितेन्द्र माथुर जी 🙏
Deleteनि:शब्द!
ReplyDelete🙏🙏🙏
Deleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 14-05-2021) को
"आ चल के तुझे, मैं ले के चलूँ:"(चर्चा अंक-4065) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित है.धन्यवाद
…
"मीना भारद्वाज"
चर्चा मंच में मेरी कविता शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद मीना भारद्वाज जी 🙏
Deleteकोरोना बन सांप
ReplyDeleteतुम्हें डंस लेगा, दीदी
और बिछुड़ना होगा हमको
इतना ज़ल्दी
कभी अकेले जीना होगा
सोचा न था
कभी अकेले रहना होगा
सोचा न था।---बेहद मार्मिक।
यही मेरे जीवन का दुखद सत्य है संदीप जी 🙏
Deleteभावुक
ReplyDeleteधन्यवाद प्रकाश जी 🙏
Deleteकोरोना ने ना जाने कितनों को निगल लिया
ReplyDeleteदुर्भाग्य कि प्रतिदिन निगल रहा है प्रीति जी 🙏
Deleteनिशब्द हूँ....कोरोना न जाने कितनों को डसेगा..
ReplyDeleteआंकड़े बढ़ रहे हैं और अपने कम हो रहे हैं... काश यह सच न होता विकास जी 🙏
Deleteहृदय स्पर्शी रचना
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद 🙏
Deleteआप का लिखा हमें रूला सकता है तो आपकी व्यथा की थाह क्या होगी।
ReplyDeleteबस यही कहूंगी आप धैर्य रखें उनके अधूरे कामों को पूरा करने का दृढ़ संकल्प लें, उनकी रचनाओं और साहित्य को यतना पूर्वक साहित्य संसार में अमर कर दें ।
सस्नेह।
धैर्य बंधाने के लिए हार्दिक धन्यवाद कुसुम कोठारी जी 🙏
Deleteहृदयस्पर्शी।
ReplyDeleteधन्यवाद शिवम जी 🙏
Deleteक्या समीक्षा करूँ समझ नहीं आ रहा शरद जी। फिर भी इतना कहूँगी आप धैर्य बनाए रखें 🙏
ReplyDeleteधैर्य बंधाने के लिए हार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी 🙏
Deleteहृदयस्पर्शी
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी 🙏
Delete"पांच लिंकों का आनन्द" में मेरी कविता शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद यशोदा अग्रवाल जी 🙏
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