- डॉ शरद सिंह
जीने की ज़द्दोज़हद में फंसे
जो बचे हुए हैं
उन्होंने झेली है पीड़ा
अपनों के बिछड़ने की
अभी झेलना है पीड़ाओं के नाना रूप
पीड़ा अपरिभाषित होने लगती है
जब हाथ में आता है
पीले रंग का
आयताकार क़ागज़
यानी
जिनकी मृत्यु पर विश्वास न हो रहा हो
उनका 'डेथ सर्टिफिकेट'
उंगलियां कांपती हैं
नाम पढ़ा नहीं जाता है
जागता है एक अफ़सोस
कि काश ! उस नाम की जगह
मेरा नाम होता!
या फिर किसी का भी नहीं
न कोई आपदा होती
न ही अवसर
पीले क़ागज़ पर नाम लिखे जाने का।
पीड़ा तो अभी और बढ़ेगी
जब उस पीले क़ागज़ को लेकर
घूमना पड़ेगा दफ़्तरों में
ज़िन्दा बच जाने की सज़ा के बतौर।
पीड़ा तो अभी और बढ़ेगी
कलेजे को चीरती हुई
सॉ-मिल की आरे की तरह
दो फाड़ हो जाएगा हृदय
श्वेत पड़ने लगेंगी लाल रक्त कणिकाएं
फिर भी सांसें नहीं थमेंगी
अज्ञात अपराध की
ज्ञात सज़ा
अभी भोगनी जो है
पीले क़ागज़ के काले अक्षरों के साथ
... ताज़िन्दगी।
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किसी अपने के चले जाने के ज़ख़्म के निशान की तरह बेजान काग़ज़ के टुकड़े को लेकर दफ़्तरों में घूमना जीने की सज़ा ही है शरद जी। पर इस सज़ा को भुगतने के सिवा चारा ही क्या है? जब जाने वालों की जुदाई के ग़म का पहाड़ जैसा बोझ आप अपने दिल पर सह रही हैं तो यह भी सही। जीना तो पड़ेगा और जीना चाहिए भी। अगर उनके कोई काम या कोई सपने पूरे होने बाक़ी हों तो आप कोशिश कर सकती हैं उन्हें पूरा करने की। हाल ही में अज़ीम शायर कुँअर बेचैन जी भी मुल्क-ए-अदम को चले गए हैं। उनकी एक ग़ज़ल का एक शेर है - तुम्हारे दिल की चुभन भी ज़रूर कम होगी, किसी के पाँव का काँटा निकाल कर देखो।
ReplyDeleteढाढस बंधाने के लिए हार्दिक धन्यवाद जितेन्द्र माथुर जी 🙏
Deleteपीड़ा तो अभी और बढ़ेगी
ReplyDeleteजब उस पीले क़ागज़ को लेकर
घूमना पड़ेगा दफ़्तरों में
ज़िन्दा बच जाने की सज़ा के बतौर।
क्या कहूँ शरद जी । कैसी कैसी पीड़ा झेलनी पड़ती है ।।
बस हिम्मत रखिये ।
धैर्य बंधाने के लिए हार्दिक धन्यवाद संगीता स्वरूप जी 🙏
Deleteजागता है एक अफ़सोस
ReplyDeleteकि काश ! उस नाम की जगह
मेरा नाम होता!
या फिर किसी का भी नहीं
न कोई आपदा होती
न ही अवसर
पीले क़ागज़ नाम लिखे जाने का।
मन की व्यथा अपने लिए भी अशुभ सोचने से नहीं रुकती | बहुत मार्मिक है ये विकलता में डूबी रचना | हिम्मत रखिये शरद जी | आपका जीवन अनमोल है | आपको बहुत बड़ी विरासत संभालनी है |
बहुत कठिन है पर हिम्मत जुटा रही हूं रेणु जी 🙏
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