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14 January, 2021

दुखड़ा रोए इकतारा | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह | आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

नवगीत

 दुखड़ा रोए इकतारा

- डाॅ सुश्री शरद सिंह


जिस्म हुआ पारा-पारा

      जैसे जलता अंगारा।


शब्द की किरचें

आंखों चुभतीं

दिल तक लहूलुहान हुआ

खारा जल

उंगली सहेजती

दीपक से भी तेल चुआ


सुख अनबूझ पहेली जैसा

      बूझे कैसे दुखियारा।



दिन की टांगें

सड़क नापतीं

शाम की क़िस्मत फुटपाथी

पीठ दिखा 

गुमशुदा हो गए

अपने मुंहबोले साथी


सब साज़ों से अलग-थलग हो

         दुखड़ा रोए इकतारा।



चांद सुलगता

कंदीलों में

तारों की चिंगारी उड़ती

किन्तु पेट के

‘ब्लैकहोल’ में

क्षुधा कील जैसी गड़ती


रात चुराए भोर का सूरज

       बाहर-भीतर अंधियारा।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)

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2 comments:

  1. सुन्दर सारगर्भित गीत..

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    1. हार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी 🌹🙏🌹

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