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15 January, 2021

धूप तले छांव | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह | आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

नवगीत

धूप तले छांव

- डाॅ सुश्री शरद सिंह


उंगली में सुई

चुभ गई

पोर-पोर में हुआ खिंचाव

             धूप तले छांव।


मोची का ठिया

ढिबरी-सा दिया

रात छुईमुई

        हो गई


घर-आंगन काला घेराव

             धूप तले छांव।


गेंदे की गंध

गजरे के बंध

फिर से अनछुई-

        सी हुई


मंडी में बिकी बिना भाव

             धूप तले छांव।


जीवन की शाम

कहे राम-राम

सूखी-सी रुई

      उड़ गई


पांव-पांव अंधियारे गंाव

             धूप तले छांव।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)

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