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26 May, 2020
23 May, 2020
दिन कैसा ये दिखलाया - डॉ शरद सिंह, वेब मैगजीन 'युवाप्रवर्तक' में प्रकाशित ग़ज़ल
web magazine युवा प्रवर्तक ने मेरी ग़ज़ल अपने दिनांक 23.05. 2020 के अंक में प्रकाशित किया है।
🚩युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
आप इस Link पर भी मेरी इन रचनाओं को पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=33412
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प्रवासी मजदूरों की व्यथा कथा कहती ग़ज़ल...
*दिन कैसा ये दिखलाया*
- डॉ शरद सिंह
छूट गई है रोज़ी-रोटी, छूट गई छत की छाया।
महानगर के पत्थर दिल ने, दिन कैसा ये दिखलाया।
कर लेते थे घनी-मज़ूरी, सो रहते थे खोली में
हमने वो सब किया, जो क़िस्मत ने हमसे था करवाया।
गांव भेजते थे कमाई का, आधा पैसा हम हरदम
कई दफ़ा तो भूखे रहकर, हमने भारी वज़न उठाया।
घरवाली जब साथ आ गई, मुनिया छोटू भी जन्में
हमने भी मुफ़लिस में जीता, छोटा-सा संसार बसाया।
जिन शहरों को शहर बनाया, जिनको था हमने अपनाया
उन्हीं शहरवालों ने हमको, पल भर में ही किया पराया।
आज गांव की ओर हैं वापस, भारी मन का बोझ उठाए
यही ग़नीमत राह-राह में, लोगों ने अपनत्व दिखाया।
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दिन कैसा ये दिखलाया - डॉ शरद सिंह, प्रवासी मजदूरों की व्यथा कथा कहती ग़ज़ल
दिन कैसा ये दिखलाया
- डॉ शरद सिंह
छूट गई है रोज़ी-रोटी, छूट गई छत की छाया।
महानगर के पत्थर दिल ने, दिन कैसा ये दिखलाया।
कर लेते थे घनी-मज़ूरी, सो रहते थे खोली में
हमने वो सब किया, जो क़िस्मत ने हमसे था करवाया।
गांव भेजते थे कमाई का, आधा पैसा हम हरदम
कई दफ़ा तो भूखे रहकर, हमने भारी वज़न उठाया।
घरवाली जब साथ आ गई, मुनिया छोटू भी जन्में
हमने भी मुफ़लिस में जीता, छोटा-सा संसार बसाया।
जिन शहरों को शहर बनाया, जिनको था हमने अपनाया
उन्हीं शहरवालों ने हमको, पल भर में ही किया पराया।
आज गांव की ओर हैं वापस, भारी मन का बोझ उठाए
यही ग़नीमत राह-राह में, लोगों ने अपनत्व दिखाया।
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19 May, 2020
16 May, 2020
ग़ज़ल - महानगर ने छोड़ा उनको - डॉ (सुश्री) शरद सिंह
Dr (Miss) Sharad Singh |
महानगर ने छोड़ा उनको
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
पेट की ख़ातिर घर से निकले, पेट की ख़ातिर धोखा खाया।
पेट ने जब ना साथ दिया, तब, मौत ने आ कर गले लगाया।
पेट ने जब ना साथ दिया, तब, मौत ने आ कर गले लगाया।
महानगर की निष्ठुरता ने, रोजी-रोटी सबकुछ छीना,
सिर पर छत भी रहने ना दी, जम कर जैसे बैर निभाया।
सिर पर छत भी रहने ना दी, जम कर जैसे बैर निभाया।
कल तक जो जीवनरेखा थे, आज उन्हीं का जीवन काटा,
महानगर ने छोड़ा उनको, पल भर को भी तरस न खाया।
महानगर ने छोड़ा उनको, पल भर को भी तरस न खाया।
नन्हें बच्चे, नई प्रसूता, बूढ़ी अम्मा ने भी देखो,
मजबूरी में मीलों चलने का अद्भुत साहस दिखलाया।
मजबूरी में मीलों चलने का अद्भुत साहस दिखलाया।
सड़कों पर हैं आज कतारें, एक राज्य से दूजे तक जो,
मानवता ने 'शरद' आज फिर, उनको है ढाढस बंधवाया।
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मानवता ने 'शरद' आज फिर, उनको है ढाढस बंधवाया।
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web magazine युवा प्रवर्तक ने आज मेरी यह ग़ज़ल अपने दिनांक 16.05. 2020 के अंक में प्रकाशित किया है।
🚩युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
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http://yuvapravartak.com/?p=32834
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10 May, 2020
मां सो नोनो कोऊ नइयां - डॉ शरद सिंह - विश्व मातृदिवस पर बुंदेली कविता
विश्व मातृदिवस पर web magazine युवा प्रवर्तक ने आज मेरी बुंदेली कविता अपने दिनांक 10.05. 2020 के अंक में प्रकाशित किया है।
🚩युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
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http://yuvapravartak.com/?p=32147
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मातृदिवस (10मई) पर विशेष बुंदेली कविता ....
मां सो नोनो कोऊ नइयां
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
मां सो नोनो कोऊ नइयां।
मां को अंचरा सीतल छइयां।
चोट लगे चए जुर चढ़ आए
करे रतजगा पाले मइयां।
खुद भूखी रै जावे लेकन
बच्चन खों दे दूध-मलइयां।
गिरहस्ती में डूबी रैती
भूल बिसारे सबरी गुइयां।
कहो ‘मताई’, ’बऊ’ कह लेओ
पकरे रइयो मां की बंइयां ।
मां की आसीसें जो होएं
रोक न पाए बिपत, बुरइयां।
मां की लोरी, मां की थपकी -
‘शरद’ न भूली मां की कइयां।
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सागर, मध्यप्रदेश
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विश्व मातृ दिवस पर मां को प्रणाम ...डॉ शरद सिंह
👩👧Happy Mother's Day 👩👧
सारे जग में सबसे बेहतर मां का आंचल।
तेज धूप में जैसे हो ममता का बादल ।
स्वयं पहने फटे, पुराने, मोटे कपड़े
लेकिन बच्चों को पहनाती हरदम मलमल।
मेरी मां दुनिया की सबसे प्यारी मां है
जिनसे सीखा मैंने सबसे रहना हिलमिल।
- डॉ शरद सिंह
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05 May, 2020
04 May, 2020
03 May, 2020
कोरोना पर प्रस्तुत हैं मेरी दो हास्य बुंदेली रचनाएं - डॉ (सुश्री) शरद सिंह
*(1)*
*ऐसी कम तैसी, कोरोना तुमाई*
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
फैला दई मुस्किल जे कैसी
रई न दुनिया पैलऊं जैसी
खरी-खरी अब सुनो हमई से
ऐसी कम तैसी, कोरोना तुमाई ...!!
बे ओरें चमगादड़ खाएं
इते हमें उल्टो लटकाएं
जे तरकीब समझ ने आई
ऐसी कम तैसी, कोरोना तुमाई ...!!
डर के मारे घरई बिड़े हैं
काज हमाए सबई अड़े हैं
तुमने सबकी बैंड बजाई
ऐसी कम तैसी, कोरोना तुमाई ...!!
हम भी ठैरे ठेठ बुंदेला
तुमें न मिलहे कुतका ढेला
हुइए तुमरी चला-चलाई
ऐसी कम तैसी, कोरोना तुमाई ...!!
'शरद' कहत है सबई जने से
डरे कोरोना लॉक रये से
तुमरी करहें टांग तुड़ाई
ऐसी कम तैसी, कोरोना तुमाई ...!!
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*(2)*
बतर्ज़ बाम्बुलिया ...
*कोरोना ने कर दओ बवाल रे*
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
बिसर चलो, सबई कछू रे
सबई कछू के जे कोरोना ने कर दओ
बवाल रे
बिसर चलो हो..
बिसर चलो, ठिलियां की रौनकें
ठिलियां की रौनक संगे, फुल्की, चाट रे
बिसर चलो, हो....
बिसर चलो, मंडी औ बजरिया
मंडी औ बजरिया के, बिसरो सनीमा औ मॉल रे
बिसर चलो हो....
बिसर चलो, जोनई से मिलत्ते
जोनई से मिलत्ते ऊकी सकल न देखी अब जाए रे
बिसर चलो.....
बिसर चलो, करजा, उधार रे
करजा, उधार लेबे कोनऊ न अब इते आय रे
बिसर चलो.....
बिसर चलो, 'शरद' की जेएई अरजी रे
जेएई अरजी रे, रखो केवल कोरोना खों याद रे
'शरद' की जेएई अरजी रे.....
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02 May, 2020
शाम ... - डॉ शरद सिंह
शाम कुछ चैन से
गुज़र जाती
जो तेरी याद
गर नहीं आती...
- डॉ शरद सिंह
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