Shayari of Dr Sharad Singh |
सोचता होगा
(मेरे ग़ज़ल संग्रह ‘परझर में भीग रही लड़की’ से यह मेरी ग़ज़ल)
- डॉ शरद सिंह
सोचता होगा, रखे वह उंगलियों को भाल पर।
छोड़ आए हैं संदेशा, काढ़ कर रूमाल पर।
वह परिधि में क़ैद अपनी और हम भी क़ैद हैं
व्यर्थ है चर्चा, चहकते पंछियों के हाल पर।
याद की सीपी उठा कर आ गई है ज़िन्दगी
तैरती हैं डोंगियां, अब झिलमिलाते ताल पर।
चंद पन्नों की तरह जब कर दिया नत्थी समय ने
क्यों करें महसूस, सूखी पत्तियों-सा डाल पर।
दोष मत देना कभी भी लड़खड़ाते भाग्य को
टूटती है अश्व की लय भी उखड़ती नाल पर।
जा चुकी है आयु गुड़िया और गुड्डा खेलने की
लिख रही हैं ढेर चिन्ताएं, सफ़ेदी बाल पर।
क्यों अंधेरे की निराशा ओढ़ कर बैठें ‘शरद’?
फिर उजले की लकीरें, खींच डालें भाल पर।
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