आप ग़ज़ल का मतला ही कहती हैं.एक चमक ज़रूर पैदा होती है. इसके बाद शेरों की तलब लगती है उसका क्या.उपरोक्त ग़ज़ल के मतले में बहुत ही मश्हूर बहर आप प्रयोग कर बैठी है.उर्दू की ये संयुक्त बहर है जिसके अरकान मफाइलुन फइलातुन, मफाइलुन फेलुन है, कभी किसी को मुकम्मिल जहा नहीं मिलता. अथवा कहां तो तय था चरागां हरेक घर के लिए. छन्द की इस बारीकी ने अनायास मुझे कुछ कहने को मज़बूर कर दिया. एक अरसे के बाद आपकी अंजुमन में आना हुआ.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
ReplyDeleteवाकई ऐसा ही होता है, आपने इस भाव को कितनी सहजता और सुंदरता से अभिव्यक्त किया है, यही आपकी अभिव्यक्ति की विशेषता है. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
कुछ न भाये, मन थकता जब।
ReplyDeleteसही बात है जब दिल उदास हो तो सब कुछ उदास लगता है...उत्तम...
ReplyDelete:-)
बहुत सुंदर भाव !!
ReplyDeleteगम और ख़ुशी दोनों का स्रोत दिल ही तो है
ReplyDeleteऔर ये गम और ख़ुशी आँखों से बयाँ हो आती है
सुन्दर !
भावपूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleteयह भी एक स्थिति है मन की -विचलित करती सी !
ReplyDeleteबढ़िया भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजो दिल उदास हो , सब कुछ उदास लगता है ,
ReplyDeleteनमी हो आँख में ,तो खाब भी सुलगता है।
न आस हो मिलने की ,प्यार भी खटकता है।
बहुत सशक्त रचना है। बधाई। विरह चित्र को दो शब्दों में बाँधना -
हैरत से कम नहीं ,तू मिले न मिले गम नहीं।
ReplyDeleteएक सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
latest post आभार !
latest post देश किधर जा रहा है ?
बेहतरीन नहीं बहुत ही नायाब शब्द और खुबसूरत चित्र का संयोजन
ReplyDeleteखुबसूरत अभिवयक्ति...... .
ReplyDeleteआप ग़ज़ल का मतला ही कहती हैं.एक चमक ज़रूर पैदा होती है. इसके बाद शेरों की तलब लगती है उसका क्या.उपरोक्त ग़ज़ल के मतले में बहुत ही मश्हूर बहर आप प्रयोग कर बैठी है.उर्दू की ये संयुक्त बहर है जिसके अरकान मफाइलुन फइलातुन, मफाइलुन फेलुन है, कभी किसी को मुकम्मिल जहा नहीं मिलता. अथवा कहां तो तय था चरागां हरेक घर के लिए. छन्द की इस बारीकी ने अनायास मुझे कुछ कहने को मज़बूर कर दिया.
ReplyDeleteएक अरसे के बाद आपकी अंजुमन में आना हुआ.
BEHATARIN
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