महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की वेबसाइट (www.hindivishwa.org) पर समकालीन रचनाकार संदर्शिका प्रकाशित की गयी है। आपकी प्रोफाइल देखकर लगता है कि आपका नाम वहाँ सम्मिलित होना चाहिए।
आपका ई-मेल उपलब्ध नहीं है इसलिए इस टिप्पणी के माध्यम से सूचित कर रहा हूँ।
डा.शरद सिंह जी, आप की सुन्दर अभिव्यक्ति मन के तारों को झंकृत करती है ! साल गुजरते किसने देखा ,देखा है बस परिवर्तन, साथ समय के मौसम भी तो,सदा बदलते रहते हैं ! वाह,क्या कहने ! -ज्ञानचंद मर्मज्ञ
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर प्रकाशित समकालीन रचनाकार संदर्शिका में मुझे शामिल किया गया है। http://www.hindivishwa.org/writer_index_1.php#. पर मेरा प्रोफाईल है। आपकी सदीशयता भरी टिप्पणी के लिए आभारी हूं। हार्दिक धन्यवाद! सम्वाद बनाए रखें।
आपके ब्लॉग मै पहली बार आना हुआ और आई तो जाने का दिल ही नहीं हुआ हम तो जेसे यही के हो कर रह गये ! बहुत ही मार्मिक रचना बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत की आपने दोस्त ! बहुत बहुत बधाई !
... bahut sundar ... prasanshaneey !!!
ReplyDeleteआंसू तो आते जाते हैं ....बहुत खूब ..सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteजमाने से लड़ने की सीख देती कविता स्वयम एक कसीदा है ! बहुत सुंदर लिखा है शरद जी आपने ! बधाई !
ReplyDeleteश्याम कोरी 'उदय'जी, आपको बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteसंगीता स्वरुप जी,मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए धन्यवाद !
ReplyDeleteUshma ji, thanks for your comments.
ReplyDeleteबेहद मर्मस्पर्शी /
ReplyDeleteकोमल भावनाओ को बांधना आसान नहीं होता
एक महिला ही एक स्त्री /बालिका का दर्द पुरुषों से
बेहतर जान सकती है /
व्यथा का एक पहलू अभिव्यक्त हुआ -सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
खूबसूरत अभिव्यक्ति। साधुवाद।
ReplyDeleteमहात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की वेबसाइट (www.hindivishwa.org) पर समकालीन रचनाकार संदर्शिका प्रकाशित की गयी है। आपकी प्रोफाइल देखकर लगता है कि आपका नाम वहाँ सम्मिलित होना चाहिए।
आपका ई-मेल उपलब्ध नहीं है इसलिए इस टिप्पणी के माध्यम से सूचित कर रहा हूँ।
डा.शरद सिंह जी,
ReplyDeleteआप की सुन्दर अभिव्यक्ति मन के तारों को झंकृत करती है !
साल गुजरते किसने देखा ,देखा है बस परिवर्तन,
साथ समय के मौसम भी तो,सदा बदलते रहते हैं !
वाह,क्या कहने !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
Bahuth Achcha ...love ur presentation..
ReplyDeleteTasty appetite
मार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeleteनिवेदन है कि आप फॉण्ट के आकार थोडा बड़ा रखें ताकि हम जैसे कमज़ोर नज़र वाले भी आपके ब्लॉग को आसानी से पढ़ सकें. धन्यवाद.
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है आपने !
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति।
बधाई!
खूबसूरत अभिव्यक्ति, बधाई!
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना!
ReplyDeletebhut hi khubsurati hai aapki lekhni me........sundar rachna...badhai ho
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर..
ReplyDeleteआभार
मनोज
बहन शरद जी, बधाई स्वीकार करें खास कर अंतिम बंद के लिए|
ReplyDeleteअच्छी गज़ल। मक्ते का शेर लाज़वाब है।
ReplyDelete..बधाई।
babanpandey जी, आपने सही कहा। बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteअरविन्द मिश्र जी बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteताऊ रामपुरिया जी आभारी हूं विचारों से अवगत कराने के लिए।
ReplyDeleteसिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर प्रकाशित समकालीन रचनाकार संदर्शिका में मुझे शामिल किया गया है। http://www.hindivishwa.org/writer_index_1.php#. पर मेरा प्रोफाईल है। आपकी सदीशयता भरी टिप्पणी के लिए आभारी हूं। हार्दिक धन्यवाद! सम्वाद बनाए रखें।
ReplyDeleteज्ञानचंद मर्मज्ञ जी बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteThank U Jay !
ReplyDeleteAnupam karn, हार्दिक धन्यवाद।
ReplyDeleteअश्विनी रॉय “प्रखर”, हार्दिक धन्यवाद। आपके सुझाव पर ध्यान दूंगी।
ReplyDeleteडॉ. हरदीप संधु जी हार्दिक धन्यवाद।
ReplyDeleteसंगीता स्वरुप जी, मैं आपको धन्यवाद भर कहूं तो कम होगा, आपके अपनत्व ने मुझे भावविभोर कर दिया है।
ReplyDeleteसुनील कुमार जी हार्दिक धन्यवाद।
ReplyDeleteअनुपमा पाठक जी हार्दिक धन्यवाद।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुपमा पाठक जी।
ReplyDeleteसत्यम शिवम जी हार्दिक धन्यवाद।
ReplyDeleteमनोज खत्री जी, आपके विचारों के लिए हार्दिक धन्यवाद।
ReplyDeleteभाई नवीन जी,मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए हार्दिक धन्यवाद! आपका स्वागत है। आपके विचारों के लिए हार्दिक धन्यवाद।
ReplyDeleteदेवेन्द्र पाण्डेय जी,आभारी हूं विचारों से अवगत कराने के लिए। हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत मार्मिक भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है आपने !
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति।
पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें
ReplyDeleteAdarniya dr. Sharad Singh ji..
ReplyDeleteNamaskar
...hume apna margdarshan pardan kare....
regards
sanjay haryana
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
कैलाश जी,मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए हार्दिक धन्यवाद! आपका स्वागत है। आपके विचारों के लिए आभारी हूं।
ReplyDeleteसंजय भास्कर जी बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग मै पहली बार आना हुआ और आई तो जाने का दिल ही नहीं हुआ हम तो जेसे यही के हो कर रह गये !
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक रचना बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत की आपने दोस्त !
बहुत बहुत बधाई !
मीनाक्षी जी, आभारी हूं आत्मीयता के लिए। आपका सदा स्वागत है। इसी प्रकार अपने विचारों से अवगत करातीं रहें।
ReplyDeleteभावपूर्ण पंक्तियाँ. शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteपहली बार पढ़ा आपको -
ReplyDeleteबहुत कशिश है आपके लेखन में -
सीधे सीधे ह्रदय उदगार हैं -
बहुत अच्छा लगा आपको पढ़कर -
best wishes.
कमाल है शरद जी। बस कमाल है। आपकी लेखनी का यह रूप तो सच में कमाल है।
ReplyDeleteबार बार पढ़े जा रहा हूं। मन नहीं भर रहा।
बेहद अच्छी कविता है आपकी.
ReplyDeleteसादर
अभिषेक मिश्र जी,
ReplyDeleteanupama ji,
आभारी हूं विचारों से अवगत कराने के लिए। हार्दिक धन्यवाद!
मनोज कुमार जी,
ReplyDeleteमैं आपको धन्यवाद भर कहूं तो कम होगा, मेरी कविता के प्रति आपके अपनत्व ने मुझे भावविभोर कर दिया है।
यशवन्त माथुर जी,
ReplyDeleteआपकी सदाशयता भरी टिप्पणी के लिए आभारी हूं। हार्दिक धन्यवाद! सम्वाद बनाए रखें।