- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
चौंकता है मन
ठिठकता है
हो जाता है कभी
अवाक भी
लगते हैं शब्द भी
निर्लज्ज
मानो
बिना समझे भावना को
उंडेल दिया हो
किसी ने
अपनी अभिलाषा का
बेमेल रंग
कभी-कभी
शब्द भी
हल्का कर देते हैं
प्रेम को
बना देते हैं सतही
इसीलिए
मौन ही
उचित अभिव्यक्ति
होती है
प्रेम की
कभी-कभी।
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