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15 August, 2024

शायरी | सवाली की तरह | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

इस तरफ़ क्या देखते हो, तुम सवाली की तरह।
ज़िन्दगी   आहत्  खड़ी  है  पांचाली की तरह।
धर्म से  इंसानियत का, न  कटे  रिश्ता  कभी
धार्मिक  उन्माद   होता  है  मवाली की तरह।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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