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10 August, 2024

बुंदेली ग़ज़ल | कां गोल रये बे | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

अर्ज़ है मेरी एक और बुंदेली ग़ज़ल 😊👇🙏
बुंदेली ग़ज़ल 
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

खींबइ  बातें  बोल  रये  बे।
लबरापन  से  तोल  रये  बे।

पब्लिक गन्ना दिखत उने तो
मों - दांतन  से  छोल रये बे।

पईसा उनके लाने सब कछु
माछीं  घांई  डोल   रये  बे।

राजनीति  की   धूरा  चाटें
कैबे  खों  अनमोल  रये  बे।

सबरे  ठाड़े   सोच   रये  जे
समै  परे  कां   गोल  रये बे?

"शरद" उने अपनी पुसाए सो
खुदई नगड़िया, ढोल रये  बे।
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खींबइ = खूब, लबरापन = झूठापन
नगड़िया = बुंदेली वाद्य, कां = कहां
पुसाए = पसंद आना
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