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22 November, 2023

कविता | चाहने पर भी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

चाहने पर भी
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

दिए की लौ हूं
एक दिन बुझ जाऊंगी

बुझने पर
फिर
नज़र नहीं आऊंगी

किसी के 
चाहने पर भी।
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