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11 March, 2023

कविता | सफ़ेद गुलाब | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

सफ़ेद गुलाब
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

तुमसे बहुत बातें करती हूं मैं
लगभग रोज़ ही
फोन पर... 
नहीं!
मिल कर... 
नहीं !
फिर?
नेट, चैट...
नहीं!
फिर?
.......
फिर....!
मैंने ये तो नहीं कहा
कि तुमने भी
मुझसे बातें की हैं!

तुम्हारी तुम जानो
मैं तो
ख़ुश हूं
तुम्हारे साथ
अपनी प्लेटोनिक दुनिया में,
किसी दरवेश की तरह...
और 
स्याही लगे मेरे हाथों में है
एक सफ़ेद गुलाब।
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10 March, 2023

कविता | सलवटों वाले दिन | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

सलवटों वाले दिन 
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

मसल कर फेंके गए 
काग़ज़ की तरह 
तुड़े-मुड़े 
सलवटों वाले दिन 
नहीं होते 
किसी भी तरह सीधे 
कर लो चाहे 
जितने जतन।
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03 March, 2023

कविता | ख़ामोशी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता | ख़ामोशी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ज़िंदगी बेजुबान होती है
लफ़्ज़ और आवाज़
तो उसे हम देते हैं
और फिर ढूंढते हैं 
एक ख़ामोशी।
      - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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01 March, 2023

ग़ज़ल | सोचा ना था | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ग़ज़ल  
सोचा ना था 
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

इश्क़ का धोखा सिर माथे पे ले कर जीते रहे हमेशा 
मौत भी धोखा दे जायेगी ये तो हमने सोचा ना था 

तनहाई पे नॉवेल लिक्खा, हिज़्र पे भी दीवान लिखा 
जफ़ा* डायरी लिखवाएगी, ये तो हमने सोचा ना था
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*जफ़ा = अन्याय, Injustice
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