#अर्ज़कियाहै - डॉ (सुश्री) शरद सिंह
हार्दिक धन्यवाद #युवाप्रवर्तक
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ग़ज़ल : धूप बारिश की
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
उसकी यादों सी सुनहरी है, धूप बारिश की।
फिर भी तन्हा है, इकहरी है, धूप बारिश की।
अपने हालात के बारे में सोचती रहती
एक गुमसुम सी दुपहरी है, धूप बारिश की।
उसने पैरोल पे छोड़ा है बादलों को अभी
खुद ही जज, खुद ही कचहरी है, धूप बारिश की।
सीलनें छन के चली जाएंगी बिस्तर से सभी
क्योंकि झीनी सी मसहरी है, धूप बारिश की।
छत से, मुंडेर पे, दीवार से कांधे पे "शरद"
इक फुदकती सी गिलहरी है, धूप बारिश की।
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#डॉसुश्रीशरदसिंह #ग़ज़ल #शायरी
आदरणीया मैम , बारिश की धूप को समर्पित बहुत ही सुंदर रचना । छत से, मुंडेर पे, दीवार से कांधे पे "शरद"
ReplyDeleteइक फुदकती सी गिलहरी है, धूप बारिश की।- मेरी प्रिय पंक्ति ।