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11 June, 2022

ग़ज़ल | यूं लगेगा कि प्यार करता है | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ग़ज़ल
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

यूं लगेगा कि प्यार करता है
इस सलीक़े से वार करता है

बात जज़्बे की मत करो उससे
रूह भी तार - तार  करता है

मुफ़लिसी झूठ-सी लगे उसको
दौलतें   जो   शुमार   करता है

वो कभी  सच  न  देख पाएगा
खु़द ही अपना हिसार करता है

और ये है 'शरद' का दिल पागल
जो  सदा   ग़म-गुसार  करता है
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*हिसार = क़िलेबंदी
*ग़म-गुसार = दुख-दर्द का बाँटने वाला, सहानुभूति प्रकट करने वाला

2 comments:

  1. वाह !!! लाजवाब ग़ज़ल । पहले शेर ने ही चारों खाने चित्त कर दिया ।

    यूं लगेगा कि प्यार करता है
    इस सलीक़े से वार करता है।

    कमाल बस 👌👌👌

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  2. अंदाज़-ए-बयां का क्या कहिए ।
    अल्फ़ाज़ बड़े ही ज़ालिम हैं ।।

    ऋतु बिन दरिद्र है वो , जीता न और मरता है ।
    तिल-तिल सुलग-सुलग कर , वो राख में बिखरता है ।।

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