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13 May, 2022

ग़ज़ल | मंज़र सारे | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

मंज़र सारे  फ़ीके,  धुंधले  नज़र आ रहे
अश्क़ों के  पर्दे  आंखों को  ढंके  जा रहे
इश्क़ का  शीशा टूटा, किरचें  बिखर गईं
जख़्मी पैरों से आखिर हम किधर जा रहे
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह


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