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27 March, 2022

मेरी तन्हाई | ग़ज़ल | डॉ शरद सिंह | नवभारत

"नवभारत" के रविवारीय परिशिष्ट में आज 27.03.2022 को "मेरी तन्हाई" शीर्षक ग़ज़ल प्रकाशित हुई है। आप भी पढ़िए...
हार्दिक धन्यवाद #नवभारत 🙏
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ग़ज़ल
मेरी तन्हाई
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

मेरी तन्हाई भी मुझसे मिलने से घबराती है।
यादों के सैलाब में अक्सर धड़कन डूबी जाती है।

कहने को दुनिया पूरी है लेकिन कोई नहीं सगा
बेगानों के बीच खुशी भी आने से कतराती है।

तेल ज़रा सा है दीपक में, फिर भी देखो तो हिम्मत
नीम अंधेरे में एक नन्हीं बाती जलती जाती है।

ऊपर वाले को हम कोसें या फिर कोसें क़िस्मत को
एक नदी जब चट्टानों से रह-रहकर टकराती है।

दिल पर पत्थर रखना मैंने, सीख लिया है दुनिया से
होठों की तो छोड़ो अब तो आंखें भी मुस्काती हैं।

रंग बहुत है इंद्रधनुष में, पर बेरंग हालात हुए
कोई भी तस्वीर आंख को अब तो नहीं लुभाती है।

किसके ख़ातिर जीना है अब, किसके ख़ातिर मरना है
एक यही तो बात समझ में, मुझे नहीं अब आती है।

'शरद' सुहाना मौसम बीता, जीवन में पतझार हुआ
अब तो वर्षा आंसू बनकर, आंखों में आ पाती है ।
        
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6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 28 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. तेल ज़रा सा है दीपक में, फिर भी देखो तो हिम्मत
    नीम अंधेरे में एक नन्हीं बाती जलती जाती है।

    सुन्दर आशावाद से ओत-प्रोत गजल

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  3. वाह बहुत बहुत सुन्दर

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  4. खूबसूरत ग़ज़ल, शुभकामनाओं सह ।

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  5. बहुत सुंदर ग़ज़ल शुभकामनाएं

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  6. विश्वास टूट जाता है , आश तो आस , अमर होती है !
    कोई साथ छूट जाता है , सांझ और प्रात नहीं रोती है !!

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