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01 March, 2022

शिवत्व | कविता | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह

शिवत्व
     - डॉ शरद सिंह
तुमने 
जो गरल दिया मुझे
वह 
ठहरा हुआ है
मेरे गले में
तुम शिव थे
पर मैं नहीं
कभी नहीं चाहा मैंने
शिवत्व पाना
मैं तो ख़ुश थी
अपनी
छोटी-सी दुनिया में
तुमने
पहले
उजाड़ी मेरी दुनिया
और फिर
पिला दिया
चिरशोक का विष
उस पर
रोक दिया उसे
मेरी ग्रीवा में
दे दिया 
जीवन और मृत्यु के बीच
त्रिशंकु सा जीवन
क्या यही है तुम्हारा-
देवत्व
और शिवत्व?
चकित हूं शिव
तुम्हारे इस शिवत्व पर

गढ़ी जानी चाहिए
नई परिभाषा 
शिवत्व की
अब तो।
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