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16 December, 2021

रात | कविता | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

रात
- डॉ शरद सिंह
रात 
एक शब्द मात्र नहीं
है एक ब्लैक होल
जिसमें
विचार भी 
खो बैठते हैं 
अपनी परछाई
और खिंचती चली जाती है
तनहाई
उस रबरबैंड की तरह
जो नहीं टूटती
किसी भी हद तक जा कर।
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5 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना।

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  2. मन को बींधती रचना।
    रात की नीरवता का बेहद मार्मिक चित्रण कम शब्दों में।

    सस्नेह।

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  3. बहुत ही बेहतरीन सृजन आदरणीय मैम

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  4. अन्धकूप-पारिभाषित !

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