पाषाण
- डॉ शरद सिंह
आज
आसमान
कुछ ज़्यादा चमकदार
कुछ हल्का नीला
कुछ उदारमना
लग रहा
कुछ तटस्थ भी
ऐसा क्यों?
बहुत सोचा
तो हुआ अहसास
आज सुबह से
आंखें नहीं भीगीं
दर्द नहीं गहराया
अपनों का छूटा साथ
कथित मित्रों के
घात, आघात
याद आई
सबकी
पर नहीं घेरा व्यथा ने
अर्थात्
पाषाण होने की
प्रक्रिया में है हृदय
वेदना और संवेदना से परे।
--------------
#शरदसिंह #डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह
#SharadSingh #Poetry #poetrylovers
#World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh #HindiPoetry #हिंदीकविता #कविता #हिन्दीसाहित्य
कुछ बदलाव जरूरी है ।
ReplyDeleteकहना बहुत जरूरी है !!
पाषाण अपक्षय के मारे , नित संवेदनता से हारे ।
ReplyDeleteदेते हैं छांव जुड़े सारे , कविता प्यारी , छांदस प्यारे !!