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01 November, 2021

रीती हुई मुट्ठियां | कविता | डॉ शरद सिंह

रीती हुई मुट्ठियां
         - डॉ शरद सिंह
सुबह
सूरज की किरणों के साथ
सहेज कर रखी
एक मुट्ठी आशा
और
एक मुट्ठी उत्साह,
भर गई थीं
दोनों मुट्ठियां

घड़ी के कांटों के साथ
सरकते गए
सेकंड्स, मिनट्स
और घंटे
लुढ़कता गया 
पहर
किसी गेंद की तरह

ढीली पड़ती गई
मुट्ठी की पकड़
फिसल गई
रेत की भांति
आशा और
उत्साह

कचोटने लगा
अपना होना
चुभने लगा
अस्तित्व ख़ुद का
वृथा लगने लगा
लिखा हुआ ख़ुद का
ख़ुद से ही उचटने लगा
मन
गिरने लगे अक्षर
लैपटॉप की स्क्रीन से
ठिठकने लगी उंगलियां
ठहरने लगे विचार

शाम के बाद
शनैः शनैः आती रात
रीती हुई
मुट्ठियों के साथ
गुज़रेगी
ओढ़कर
अवसाद का लिहाफ़
और 
डबडबाती रहेंगी आंखें
तक़िया भिगोती हुईं।
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2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 3 नवंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

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