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27 September, 2021

कविता एक नदी | कविता | डॉ शरद सिंह

कविता एक नदी
      - डॉ शरद सिंह

नदी 
पहाड़ों के अपने 
उद्गम से निकल कर
बहती है
पठारों की ओर
अनगिनत घाटों में
स्नान करते हैं लोग
उसके जल में
पाप धोते
मोक्ष प्राप्त करते
खेती-किसानी
और सब्ज़ियां उगाते
खुश रहते हैं
उस बेघर हुई
नदी को देख कर
जिसे है पता कि
वह कभी नहीं 
लौट कर
देख सकती
अपने घर को-
अपने उद्गम को

नदी से
जब छूटता है उसका
उद्गम स्थल
तब से वह
बन जाती है प्रवाह
अन्य के जीवन का आधार
संस्कृति का विस्तार
विछोह की पीड़ा से उपजा
एक सनातन संसार

नदी 
कुछ नहीं करती स्वयं
बाढ़, उफान, शांति
होता है स्वतः
सब कुछ

यह जाना मैंने
तब
जब
मेरा रुदन
जब उतरा 
मेरी कविता में
और वह 
सिर्फ़ मेरा नहीं रहा,
एक नदी बन गया
न चाहते हुए भी।
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2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 29 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

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  2. विरल कथनानुभाव..

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