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21 August, 2021

वह एकाकी तारा | कविता | डॉ शरद सिंह

वह एकाकी तारा
     - डॉ शरद सिंह

वह दूर आकाश में
एकाकी तारा
घूम रहा है
अपनी धुरी में
उल्लकाएं भी
उससे बच कर निकलती हैं
दूर-दूर से,
न कोई टकराना चाहता
न कोई अपनाना चाहता
देखें कब तक
दिपदिप करेगा 
वह एकाकी तारा

जिस दिन टूटेगा वह
कई अनजाने लोग
मांगेंगे 'विश'
क्या सचमुच-
किसी का टूटना
ख़त्म होना
इच्छाएं पूरी कर सकता है 
किसी की?

इस प्रश्न का उत्तर पाने
टूटना होगा
उस एकाकी तारे को,
जो फ़िलहाल 
चाहता है जानना
विस्तृत आकाशगंगा में
असंख्य 
अपरिचित 
तारों के बीच
अपने होने का उद्देश्य
और अकुलाकर
ढूंढता है अपना 'ब्लैक होल'
क्योंकि उसने सुन रखा है
जो तारा टूटता नहीं
उसका होता है अंत
'ब्लैक होल' में
जो होती है 
एक अनन्त यात्रा की
शुरुआत
आकाशगंगा से परे
मृत्यु के समकक्ष

अब डरता नहीं
वह एकाकी तारा
न टूटने से
न मृत्यु से।
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5 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (23-08-2021 ) को 'कल सावन गया आज से भादों मास का आरंभ' (चर्चा अंक 4165) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. यही है जीवन सार । अति सुन्दर सृजन ।

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  3. मार्मिक सृजन।
    सादर

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  4. बेहद हृदयस्पर्शी सृजन

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  5. ओह! दर्द से लबरेज।
    मर्मस्पर्शी सृजन।
    अंत की सकारात्मक पंक्ति ..
    डर से मुक्ति 👌।

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