- डॉ शरद सिंह
हां, मुझसे छिन गया
मेरी ज़िंदगी का सुख, सौंदर्य, गर्व
और जीने का मक़सद
जैसे हरे-भरे वृक्ष पर
चला दे कोई कुल्हाड़ी
और पथरा जाए वृक्ष
बिखर जाएं टूटी शाखाएं
हां, मुझसे छिन गया
विश्वास,
छिन गई आस्था
टूट गई देव प्रतिमा
हो गया दिया औंधा
बह गया तेल
बची हुई, बुझी हुई बाती को
तीन पर्तों में लपेट दिया है मैंने भी
अब कोई देवता
न करे मुझसे
प्रार्थना की उम्मीद
उसने भी नहीं सुनी थी मेरी याचिका
नहीं दी मुझे
मेरे अपनों के जीवन की भीख
अब उसे भी नहीं मिलेगा
कोई भी चढ़ावा
मुझसे
हां, मैंने लपेट दिया है
तीन पर्तों में
देवता को भी
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उफ़ ... शरद जी ...क्या कहूँ ? बहुत मुश्किल होता है इस स्थिति से निकलना ... बस दुआएं कि आप हिम्मत रखें ...
ReplyDeleteशारद दी,ऐसे वक्त में हिम्मत रखना बहुत मुश्किल होता है। सांत्वनापर कुछ भी बोलना सहज है लेकिन जिस पर बीतती है, वो ही इस दुख को जान सकता है।
ReplyDeleteलेकिन इसके लिए ईश्वर को दोष देना सही नही है। आप तो खुद इतनी समझदार हैओ, पढ़ी लिखी है...आपको पता है कि ईश्वर की आपसे व्यक्तिशः कोई दुश्मनी नही थी। मैंने कही पढ़ा था कि हर इंसांनकी सांसें पहले से ही लिखी होती यही। मतलब जितनी सांसे इस धरती पर हमारी लिखी हुई है उतने वक्त इंसान जीता है। इसलिए धीरज रखिए। आपके मम्मी और दीदी की इतनी ही सांसे लिखी हुई थी। ऐसा सोच कर अपने आप पर कंट्रोल कीजिए। तब ही आप नार्मल हों पाएगी।
मैं तो आपको और वर्षा दी को ब्लॉग के माध्यम से थोड़ा सा ही जानती हूं। लेकिन इतने में ही मुझे वर्षा दी के जाने से इतना बुरा लगा तो आप तो बहन है। मैं समझ सकती हूं।
लेकिन प्लीज अपने आप पर कंट्रोल कीजिए।